Saturday, June 27, 2020

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में...

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बा'द सहर न हो
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो
मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो
कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो

- बशीर बद्र

Saturday, November 29, 2014

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

जरुरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं.

मदद करनी हो उसकी
यार की ढ़ाढ़स बंधाना हो
बहुत देरीना रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं.

बदलते मौसम कि सैर मे
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं.

किसी को मौत से पहले
किसी गम से बचाना हो
हक़ीकत और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं.

- मुऩीर नियाज़ी

Welcome to My blog

Just got inspired by Pratul sir and created my own blog. Quite a medium to express urself.