कैसे मानू के जमाने की खबर रखती है,
गर्दिशे-वक्त तो बस मुझपे नज़र रखती है.
मेरे पैरों की थकन रुठ ना जाना मुझसे,
एक तू ही तो मेरा राज़े-सफर रखती है.
धूप मुझको जो लिए फिरती है साये-साये,
है तो आवारा, मगर ज़ेहन मे घर रखती है.
दोस्ती तेरे दरख्तों मे हवाएँ भी नही,
दुश्मनी अपने दरख्तों मे समर रखती है.
सफर माना मेरा जारी नही है,
मगर हिम्मत अभी हारी नही है.
बुजुर्गों से मुआफ़ी चाहता हूँ,
किसी के बस की सरदारी नही है.
फजां मे हर तरफ चीखें हैं ताहिर,
किसी बच्चे की किलकारी नही है.
सफर माना मेरा जारी नही है,
मगर हिम्मत अभी हारी नही है.
-ताहिर फ़राज
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