उस ने सुकूते-शब़ में भी अपना पयाम रख दिया,
हिज्र की रात बाम पर माहे-तमाम रख दिया.
आमदे-दोस्त की नाविद कूए-वफा में आम थी,
मैंने भी इक चिराग-सा दिल सरे-शाम रख दिया.
देखो ये मेरे ख्वाब थे देखो ये मेरे जख्म हैं,
मैने तो सब हिसाबे-ज़ान बर-सरे-आम रख दिया.
उस ने नजर नजर मे ही ऐसे भले सुखन कहे,
मैने तो उस के पाँवो में सारा कलाम रख दिया.
शिद्दते-तिश्नगी मे भी गैरते-मैक़शी रही,
उस ने जो फेर ली नज़र मैने भी ज़ाम रख दिया.
और फ़राज चाहिए कितनी मुहब्बतें तुझे,
के माँओ ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया.
-अहमद फ़राज
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