हजार कांटो से दामन छुड़ा लिया मैंने,
अना (अहंकार) को मार के सब कुछ बचा लिया मैंने.
जहाँ भी जाऊँ नजर मे हूँ एक जमाने की
ये कैसा खुद को तमाशा बना लिया मैंने.
अंधेरे बीच मे आ जाते इससे पहले ही
दीया तुम्हारे दीये से जला लिया मैंने.
अज़ीम थे ये दुआओं को उठने वाले हाथ,
ना जाने कब उन्हे कासा (भिक्षापात्र) बना लिया मैंने.
जले तो हाथ, मगर हाँ हवा के हमले से,
किसी चिराग़ की लौ को बचा लिया मैंने.
तराशना ही था हीरा तो मेरा तेरा क्या
किसी भी राह का पत्थर उठा लिया मैंने.
-वसीम बरेलवी
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