सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं.
सुना है रब्त है उस को खराब हालों से,
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं.
सुना है दर्द कि गाहक है चश्मे-नाजुक उसकी,
सो हम भी उस की गली से गुजर कर देखते हैं.
सुना है बोले तो बातों से फुल झड़ते हैं,
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं.
सुना है रात उसे चांद ताकता रहता है,
सितारे बामे-फ़लक से उतर कर देखते हैं.
सुना है हश्र हैं उसकी गज़ाल सी आँखे,
सुना है उसको हिरन दश्त भर के देखते हैं.
सुना है दिन को उसे तितलीयाँ सताती हैं,
सुना है रात को जुगनु ठहर के देखते हैं.
अब उस के शहर में ठहरें की कुछ कर जाएँ,
‘फ़राज’ आओ सितारे सफर के
देखते हैं.
-अहमद फ़राज
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