Monday, September 1, 2014

लाई हयात आए कज़ा ले चली चले

लाई हयात आए कज़ा ले चली चले,
ना अपनी खुशी आए ना अपनी खुशी चले.

बेहतर तो यही है के ना दुनिया से दिल लगे,
पर क्या करें जो काम ना बेदिल्लगी चले.

हो उम्रे-खिज्र भी तो कहेंगे बा-वक्ते-मर्ग,
हम क्या रहें यहाँ अभी आए अभी चले.

दुनिया ने किस का राहे-फऩा में दिया है साथ,
तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले.

- जौक

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Just got inspired by Pratul sir and created my own blog. Quite a medium to express urself.