Monday, September 1, 2014

जितने अपने थे सब पराये थे

जितने अपने थे, सब पराये थे,
हम हवा को गले लगाए थे.

जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे.

जितने आंसू थे, सब थे बेगाने,
जितने मेहमां थे, बिन बुलाए थे.

सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं,
सारे किस्से सुने-सुनाए थे.

एक बंजर जमीं के सीने में,
मैने कुछ आसमां उगाए थे.

सिर्फ दो घूंट प्यास कि खातिर,
उम्र भर धूप मे नहाए थे.

हाशिए पर खड़े हूए है हम,
हमने खुद हाशिए बनाए थे.

मैं अकेला उदास बैठा था,
सामने कहकहे लगाए थे.

है गलत उसको बेवफा कहना,
हम कौन सा धुले-धुलाए थे.

आज कांटो भरा मुकद्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाए थे.
-
डॉ राहत इंदौरी

6 comments:

Unknown said...

This applies at me completely

Unknown said...

Nice

Unknown said...

Awesome sir

Unknown said...

Bahut sahi rahat Bhai

Unknown said...

You Will remain Alive ,
Always and Forever

Anonymous said...

Mai akela udaas baitha tha.
Shaam me kahkahe lagate the.

Samne *
Shaam ne

Welcome to My blog

Just got inspired by Pratul sir and created my own blog. Quite a medium to express urself.